आत्महत्या केवल व्यक्तिगत कमजोरी नही बल्कि सामाजिक अस्वीकार्यता का परिणाम है।
Suicide (sui-अपना cide-हत्या) का कारण अपनी व्यक्तिगत कमजोरी या केवल मनोविज्ञान से जुड़ा मसला नही है बल्कि समाज एवम इसकी विभिन्न इकाइयों (परिवार, दोस्त, पड़ोसी,रिश्तेदार, संगठन, कार्यालय, कार्यक्षेत्र, आदि) में होने वाले मानसिक तनाव या विचारों की अस्वीकार्यता, टीस,भावनाओ का मजाक, एवम परिस्थितियों से अनभिज्ञता जैसे कारण हो सकते है ।
आज कल के दौर में आत्महत्या का एक बड़ा कारण डिस्ट्रेस सुसाइड है अर्थ यह है कि हम खुद को यदि उम्मीदों के जाल में फंसा ले या पारिवारिक सदस्यों की महत्वाकांक्षा का यथोचित परिणाम न दे पाये,कार्यक्षेत्र में दुर्व्यवहार मिले ,अस्वीकार्यता हो ,छात्रों में विद्यालयीन एवम पारिवारिक दबाव में हो तो जीवन जीने की लालसा खत्म हो जाती है। इसका एक बड़ा कारण है अवसाद।
इस अवसाद का कारण व्यक्ति की मानसिक कमजोरी नही बल्कि भावनात्मक अलगाव, सामाजिक दबाब, प्रतिस्पर्धा ,शारीरिक अक्षमता और हार्मोनिक डिसऑर्डर है । परन्तु समाज इन पहलुओं को स्वीकार न कर अवसादग्रस्त व्यक्ति को ही कोसना , चिढाना, परिवार जनों का इस डिप्रेशन में होने को नाटक जैसे शब्द का इस्तेमाल कर उसे गलत साबित करने लग जाता है जिससे वह व्यक्ति अकेलापन महसूस करता है ।,वह आशाहीन, असहाय, उद्देश्यहीन हो जाता है। वह, अपने रुचि के विषयों से उलट उनसे ही दूर भागने लगता है, दिन भर दुखी रहता है। जिससे वो अपने मन की बात किसी अपने से नही कह पाता और चिंता में डूबा रहता है।
जिंदगी में घुटन,चिंता तनाव जैसी परिस्थितियों में हमारा हार्मोनिक बैलेंस बिगड़ जाता है और हम दुखी रहने लगते है। और जीने की बजाय खुद को मार लेना बेहतर लगने लग जाता है।जो कि आत्महत्या जैसे गंभीर कदम उठाने के लिए स्वयं को विवश कर देता है।
आज समाज को इस गंभीर प्रश्न के बारे में विचार करना होगा कि हमारे समाज मे पीढ़ियों के बीच का जो एक अंतर है उंसके विचारों में जो दूरी उसे खत्म करके उनके बीच संवाद स्थापित करना होगा। उन्हें एक दूसरे के विचारों को स्वीकर करना होगा। प्रतिस्पर्धा के भँवर में धक्का देने की बजाय उन्हें सीखने और उनके पसंदीदा विचार को जीने का आदी बनाना होगा।
आज युवाओं को उम्मीदों के बोझ तले दबाने की बजाय उनके स्वतंत्र विचारो को तरजीह देने की कोशिस करनी चाहिए। यदि वो अवसाद में है तो उसे हास्यास्पद स्थिति नही बल्कि गंभीर चुनौती समझ कर उसका हल निकालने का प्रयास करे। ऐसे व्यक्ति से निरन्तर संवाद स्थापित करना और यदि आवश्यक हो तो यथोचित मनोचिकित्सक से भी संपर्क करना चाहिए। जहां तक संभव हो खुद के आसपास एक खुशनुमा वातावरण का निर्माण करे जो कि सकारात्मक विचारो से लबरेज हो।
✍️अभिषेक गौतम
"क्षितिज"
1 टिप्पणियाँ
Ati uttam vichar samaj sudhar ki taraf
जवाब देंहटाएं