एक वक्त था जब कुछ पुराने दोस्त होते थे,माँ होती थी, कुछ रिश्तेदार होते थे, कुछ नए यार भी होते थे जिनसे शाम होते ही लम्बी बाते होती थी।दिनभर का एक-एक घण्टा किस्सों की तरह हर किसी से सुनाया जाता था ऐसे लगता जैसे हम अलग अलग शहरों में जाकर किस्सागोई कर रहे हो। मग़र पिछले कुछ सालों विशेषकर कुछ महीनों में सब बदल गया।अब शाम होते ही एक अकेलापन आ जाता है मन रुआंसा हो…
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