हर शाम-उदास जिंदगी

एक वक्त था जब कुछ पुराने दोस्त होते थे,माँ होती थी, कुछ रिश्तेदार होते थे, कुछ नए यार भी होते थे जिनसे शाम होते ही लम्बी बाते होती थी।दिनभर का एक-एक घण्टा किस्सों की तरह हर किसी से सुनाया जाता था ऐसे लगता जैसे हम अलग अलग शहरों में जाकर किस्सागोई कर रहे हो। मग़र पिछले कुछ सालों विशेषकर कुछ महीनों में सब बदल गया।अब शाम होते ही एक अकेलापन आ जाता है मन रुआंसा हो जाता है औऱ एक तरह की उदासी छा जाती है मालूम होता है जैसे आस पास निर्वात हो गया!
      अब शाम होते ही माँ को हम फोन नही मिलाते कही वो सवाल न कर दे कि क्या खाया है,ठीक तो है ना,गर्मी ज्यादा है तो बाहर तो नही निकले जैसे कितने ही सवाल आ जायेंगे और हम उत्तर में मौन रह जाते और फिर तपाक से "आप क्या कर रही"अगले क्षण प्रश्न करके उत्तर देने का प्रयास करते है मग़र वो माँ है वो आपके सारे करतब से परिचित है। वो आपके सारे के सारे सवालों का ज़बाब खुद को देती है कि आराम कर लो,सो जाना समय से।उसके बाद की कहानी तो रात को माँ के तकिए को पता होगी बेटो की याद में बहाए हर माँ के आशुओँ के बारे में अगर किसी को पता है तो उनके तकियों को ही पता है वो ही उनके अकेलेपन के साथी जिनसे बेटो की अनुपस्थिति में वो अपने दिल की बात करती है।
  एक दोस्त हैं जो अब इस इंतज़ार में होते है कि कब हम अपने दिन भर के कश्मकश भरे जीवन को उनसे बयां करेंगे? वो कब हमसे कह पाएंगे कि चल अब ठीक हो गया मजे करते है। वो आज भी मंजिल में पहुच जाने के इंतज़ार में है। अगर हमने हिम्मत करके उनसे संपर्क बनाये भी तो वो आपके समय के कीमती होने का एहसास करते है और फिर एक त्याग कर जाते है। 
      इन सबसे इतर ये एक मन है जो किसी न किसी प्रलोभन में आने को लेकर आतुर रहता है वो अपनी पुरानी यादों को दोबारा उसी तरह जीने का प्रयास करता है मगर फिर आस पास की स्थिति दोबारा से याद आती है और आप अकेलेपन को ही अपना के सन्नाटे पसरी रात का इंतज़ार करने लगते है कि जिसमे आप  नींद को खोजते है करवटे बदलते हुए मग़र वो आती है दूसरे पहर जब मन भी थक कर उदासी को ही अपना लेता है।

#अभिषेक_क्षितिज
  

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