भारत मे स्वास्थ्य के क्षेत्र में covid-19 के समय बदतर स्थिति दिखाई पड़ी , क्या कारण हो सकते है? वर्तमान स्थिति में कोरोना पर राजनीति ।

   Covid 19 वायरस द्वारा फैली बीमारी का अब तक कोई इलाज नही मिला। इस महामारी ने पूरे विश्व को अपने चपेट में ले रखा है , इलाज और टीके की खोज में विश्व में कई देशों के संस्थान प्रयासरत है कुछ संस्थानों का दावा है आगामी वर्ष के प्रथम तिमाही तक संभव हो जाएगा। जहां इससे बचने के लिए प्रथमतया lockdown और मास्क ,हांथो को सेनेटाइज करते रहना 2 गज की सामाजिक दूरी  बनाए रखने को उपाय माना गया ताकि संक्रमण न फैले। यदि संक्रमण हो गया तो अस्पताल में डॉक्टरों की निगरानी में रख कर इम्यूनिटी बढ़ाकर कर इलाज की कोशिश जारी है और इसके सफल परिणाम भी है।
     भारत मे जैसे जैसे कोरोना ने अपना पैर पसारना शुरू किया यहाँ के अस्पतालों में अव्यवस्था , डॉक्टरों की कमी, पैरामेडिकल स्टाफ की कमी दिखनी शुरू हुई ,। अस्पतालों में बिस्तरों की कमी , ऑक्सीजन की कमी, वेंटिलेटर की कमी जो कि संक्रमण के खतरे बढ़ने पर जान बचाने के लिए आवश्यक उपकरण है, कि कमी पाई गई। इसके साथ साथ सरकारो के दावों की पोल खुल गयी। 

     भारत में स्वास्थ्य बजट 2014-15 में जीडीपी का 1.2%, जो कि 2020 के बजट में बढ़कर जीडीपी का 1.5% हुआ इससे ही पता चलता है कि भारत सरकार स्वास्थ्य सेवाओं की आपूर्ति को लेकर सरकार कितनी सजग है। इस बात का अंदाजा आप इससे लगा सकते है कि अमेरिका अपने स्वास्थ्य बजट में जीडीपी का 15 प्रतिशत  और जापान 10 प्रतिशत तक खर्च करते है ।

      भारत मे अस्पतालों की दुर्दशा है यहाँ डॉक्टरो की कमी का आलम यह है कि 13000 लोगो में केवल 1 डॉक्टर उपलब्ध है जबकि आदर्श वैश्विक अनुपात 1:1000 का है। मार्च 2017 तक 5624 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में केवल 4156 डॉक्टर ही उपलब्ध है जबकि स्वीकृत पद 18347 है यानी 82 प्रतिशत डॉक्टरों के कमी है। यही हाल सहायक स्वास्थ्य सेवाओं में जैसे रेडियो ग्राफर के 85 फीसदी लैब तकनीशियन 84 फीसदी कम है। 10000 ANM और नर्सिंग स्टाफ की कमी से जूझ रहे है।  

     जहाँ भारत मे बिस्तरों की उपलब्धता  प्रति1000 जनसँख्या में 0.7 है वही बाकी देशो में 2.3 है। भारत में सरकारी अस्पतालों की स्थिति दयनीय है इसके पीछे के कारण है सरकार औऱ सामाजिक संगठनों में नैतिक दायित्व की कमी, भ्रस्टाचार, निजीकरण, महंगी और विलासिता पूर्ण जीवन प्रणाली की ओर आकर्षण । डॉक्टरों का शहरो में निजी प्रैक्टिस करके यह पेशा अब सेवा से ज्यादा कमाई का हो चला है। बड़े बड़े पांच सितारा होटल के माफिक अस्पतालों को शहरों में खड़ाकर करके सेवाएं महंगी कर दी गयी है इसका आलम यह है कि गरीबो तक इसकी पहुच कम कम हो गई। नतीजतन आउट ऑफ पॉकेट खर्च बढ़ रहा जिसके कारण गरीब और गरीब होते जा रहे है।

       प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, उपस्वास्थ्य केंद्रों के हालात बदतर है यहाँ न तो आधारभूत संरचना है और न ही स्टाफ़, भ्रस्टाचार चरम पर है कुछ राज्यों में ये तक हाल है कि स्वास्थ्य केंद्र उप स्वास्थ्य केंद्रों के ताले नही खुलते खुलते है तो डॉक्टर तक नही आते है। ऐसे में किस प्रकार से जनकल्याणकारी सरकार अपने दायित्वों को पूर्ण करेगी। 

अभी कोरोना वैक्सीन के आने के संकेत मिले उसके वितरण को लेके एक मजबूत तंत्र का निर्माण करके जन जन तक लाभ पहुचाने की कोशिश होनी चाहिए थी । परन्तु ऐसा कुछ नही होने से पहले ही सत्ता पक्ष इसे अपना चुनावी मुद्दा बनाने में लग गया ।

बिहार के चुनाव में कहा गया कि फ्री वैक्सीन देगे , अब एक मंत्री जी ने कहा हमने कभी नही कहा कि हम सभी को उपलब्ध कराएंगे। ऐसे बयानों और कृत्यों से सरकार की छवि धूमिल होती है और सरकार की विश्वसनीयता 
कम होती है।

सरकार का ध्यान राजनीति से ऊपर उठकर जन कल्याण में होना चाहिए । स्वास्थ्य क्षेत्र को मजबूत करने हेतु जो कुछ कदम उठायें गए है नाकाफी है। इस महामारी से हमारे स्वास्थ्य क्षेत्र की कमियां उजागर हुई है  अतः इन्हें जल्दी दूर करके नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराना चाहिए।

©अभिषेक गौतम
      क्षितिज

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