लोकतंत्र के लिये बेताब जम्मू कश्मीर

आज से लगभग तीन साल पहले जम्मूकश्मीर पुनर्गठन एक्ट को मंजूरी तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी ने दी थी। अनुच्छेद 370 हटाने के उपरांत प्रधानमंत्री मोदी ने  कहा था जम्मूकश्मीर को आतंकवाद,राजनीतिक,परिवारवाद,उग्रवाद खत्म करके विकासयुक्त स्वस्थ लोकतंत्र का निर्माण करेंगे। 
  इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए राजनीतिक दलों से जुड़े व्यक्तियों को उनके घर मे ही नजर बंद कर दिया गया,उग्रवाद से जुड़े लोगों में छापेमारी गिरफ्तारी भी की गई,मीडिया से जुड़े लोगों को भी रोका गया, कई ऐसे कदम भी उठाए गए वो सवालों के घेरे में है,राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को जम्मू जाने से रोका गया ,इन 3 सालो के क्या क्या हुआ सबने देखा। राष्ट्रपति शासन लगाकर कर उपराज्यपाल को जिम्मेदारी दी गयी परन्तु चुनाव नही कराए जा सके।
आज भी जम्मूकश्मीर के सवाल वैसे के वैसे बने है कश्मीरी पंडितो के पुनर्वास,राज्य की आर्थिक उन्नति,सुरक्षा बलों और नागरिकों की मृत्यु आंकड़े आज भी चिंता जनक है। पिछले 5 सालों में हुई 177 मौतों में देखे तो 2019 से 2021 के बीच मे 87 मौते हुई है। इसी बीच पंचायतों के चुनाव भी कराए गए जिनमे चुने गए पंचों के संबंध के गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था को परिवारमुक्त राजनीति की शुरुआत है ये नई लीडरशिप है परंतु पिछले कुछ समय मे चुने हुए कश्मीरी पंडितों की हत्याएं सारे दावों को बेमानी कर देती है  साथ ही साथ भारत-पाकिस्तान सीमा पर सीजफायर आज भी चुनौती बना है   जम्मूकश्मीर पुलिस के जवानों की शहादत के आंकड़े भी उसी तरह बने है।

किये गए वादों और सच्चाई के बीच एक बड़ी सी खाई भी देखने को मिल रही है। जिस राज्य को स्वर्ग बनाने के सपने देखे गए वहां की सच्चाई कुछ और बयां होती है। पहले तो सुरक्षा कारणों से बंद फिर covid 19 के कारण लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था चरमरा गई। जम्मू कश्मीर टूरिज़्म इकॉनमी वाला राज्य था परन्तु इन 2 सालो के बंद के कारण बेरोजगारी चरम पर है हालांकि इस साल पर्यटकों की संख्या बढ़ने से सुधार हुआ है मगर वो काफी नही है। फल उत्पादन,कारपेट इंडस्ट्री,हथकरघा उद्योग जो कश्मीर की पहचान है आज वो वित्तीय संकट के कारण अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे है।लगातार शिकायते मिलती रही है कि सरकार की कथनी और करनी में फर्क है जो आर्थिक मदद सरकारी तंत्र द्वारा मिलनी चाहिये उसके लिए पर्याप्त मात्रा में फंड नही दिये जाते है।
पिछले वर्ष परिसीमन आयोग की रिपोर्ट के बाद फिर एक विवाद सामने आया आरोप लगे कि जम्मू (हिन्दू बहुत आबादी वाला क्षेत्र)और कश्मीर घाटी(मुस्लिम बहुत क्षेत्र) में सीटो की संख्या बराबर कर दी गयी जो  कि जनसंख्या के अनुपात के नजरिये से सही नही है। इसके बाद सरकार चुनाव की तैयारी में है मगर अब तक इसके सम्बंध कुछ स्पष्ट नही दिख रहा। 
सहकारी संघवाद के रास्ते पर चलने वाले देश मे चुनी हुई सरकार का होना आवश्यक है। जन सरोकार के मुद्दे पर सत्ता और विपक्ष की आवाज होना जरूरी है अतः सरकार को जम्मू कश्मीर में चुनाव शीघ्रता से करके लोकतंत्र को बहाल करने का प्रयास करना चाहिए। गृहमंत्री द्वारा किये गए वादे के मुताबिक दोबारा राज्य का दर्जा देने के वादे को पूरा करते हुए चुनी हूई सरकार के गठन की दिशा में बढ़ना चाहिए। यही आजादी के 75 वर्ष में जम्मू कश्मीर के नागरिकों के लिए विकास के रास्ते खोलेगा और असल मायने में अमृत महोत्सव मनाया जा सकेगा।

जय हिंद

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ