कितने अकेले होते है वो लोग जो प्रेम में होते हुए भी सिर्फ़ इंतज़ार करते है। उनका इंतजार एक बार मुलाकात का होता है एक बार बात कर लेने भर का होता है एक बार देख लेने भर का होता है। मग़र उनकी बेबशी भी देखने लायक होती है वो जिसे चाहता है उसे बार बार कोशिशे करने के बाद एक उम्मीद बांधे रखता है कभी दिन की शुरुआत उसकी ओर से होगी। असल में वो कभी तुम्हारे साथ शुरुआत करने आया ही नही होगा क्योंकि अगर ऐसा होता तो उसे भी एहसास होता और वो भी शुरुआत करता वो अग़र करता भी है तो भूल जाता है कि शुरुआत तो पहले ही हो चुकी है वो सिर्फ प्रतिक्रिया मात्र है।
जब आप सारी दुनिया के होते हुए भी उस भीड़ में ख़ुद को अकेला पाते है तब सही मायने पता चलता है जिसे आप करीब समझते है वो महज़ एक करीबी व्यक्ति है या वो आपके बहुत ही करीब है क्योंकि अगर वो आपके करीब है तो जरूर वो आपके साथ एक शुरुआत करेगा।
जीवन में ये बदलाव जरूर देखें जाते है, किसी जगह में बहुत ही ज्यादा दिनों तक हो वैसे ही जब आप किसी के साथ बहुत दिनों तक तो इस किस्म के अकेलेपन का आभास जरूर होता है उसका कारण है न तो शहर आपको स्वीकार करता न वो साथी जिसके साथ है। शहर के हिसाब से बदले तो शहर बदल जाता है और साथी के हिसाब से साथी ।
जरूरी है ऐसे वक्त में सभी से दूर जो अपने होकर भी अपने नही बस इंतज़ार में अपने अकेले को जीना ही सबसे खूबसूरत है। जब भी अकेले हो आप विश्वास रखे आप पूर्णतः अपने साथ है। आप जितना स्वयं के साथ हो उतना आपके साथ दूसरा कदापि नही हो सकता।
3 टिप्पणियाँ
❤️❤️👌
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंWahhh!!!
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