सुप्रीम कोर्ट में महिला न्यायधीशो की संख्या एक चर्चा का विषय रहा है। आखिर आज 70 साल आजादी के होने वाले है कैसे हम अब तक मुख्य न्यायाधीश के रूप में किसी महिला न्यायधीश को पद पर बैठे नही देख सके। यह बहुत गंभीर प्रश्न खड़ा करता है बराबरी के अधिकार पर , लिंग भेद पर। हम देश की आजादी के 75 साल बिता चुके है यदि पीछे इतिहास के पन्ने पलटे तो पाएंगे कि सुप्रीम कोर्ट (1950) की स्थापना के लगभग 40 वर्ष बाद महिला न्यायाधीश के रूप साल 1989 में फातिमा बीबी न्यायाधीश के पद पर आसीन होती है।
हाल ही में 3 महिला जजो की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट में हुई जिनमे से जस्टिस हिमा कोहली,जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस बी वी नागरत्ना है। इन्हें मिलाकर 34 जजो की संख्या वाले सुप्रीम कोर्ट में 4 महिला जज होंगी। यदि सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश के नियुक्ति के संबंध में वरिष्ठता के सिद्धांत का पालन होता रहेगा तो जस्टिस नागरत्ना 2027 में मुख्य न्यायाधीश के पद पर पहुँच सकती हैं और तब जाकर आजादी के इतने वर्षों के बाद भारत में सुप्रीम कोर्ट में पहली मुख्य न्यायाधीश मिलेंगी।
हमारे न्यायलयों में महिलाओं की भागीदारी कम क्यों है
यदि इसके उत्तर को खोजने का प्रयास करे तो पाएंगे कि कैसे कॉलेजियम में 20 नाम के बीच में 2 महिलाओं के नाम भेजें जाते है और उनमें विरले ही उदाहरण मिलते है जब वो इस पद पर नियुक्त होती है अब तक सिर्फ 8 महिला जजो ने ही सुप्रीम कोर्ट में काम किया है। मुख्य न्यायाधीश शरद बोबड़े ने महिला वकीलों के याचिका के संबन्ध में कहा था कि महिला मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में जजो की नियुक्ति हाइकोर्ट के जजो के पदोन्नति के उपरांत होती है और वहां महिला वकीलों के जज न बनने के पीछे के तर्क है उनके अनुभव में कमी होना।
हम देखते है कि महिला वकीलों को सामाजिक पूर्वाग्रह के ग्रसित मानसिकता के लोग महत्वपूर्ण वाद होने पर अपना पक्ष रखने के लिए नही चुनते इसके पीछे तर्क देते है कि पुरुष वकीलों की क्षमता और सम्बंध ज़्यादा अच्छे होते है
जिससे उन महिला वकीलों के कोर्ट क्राफ्ट पुरुषो के मुक़ाबले के स्तर में नही होता है। पितृसत्तात्मक समाज मे पुरुषों का ऐसे संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी हेतु स्वीकार्यता नही बन पाती है। जिससे लगातार उनके प्रतिनिधित्व को उपेक्षित रखा गया है
भारत मे निचली अदालतों में नियुक्ति परीक्षा के माध्यम से होती है वहाँ हम देखते है 25 से 30 प्रतिशत महिला न्यायाधीश सफलता प्राप्त करके पदग्रहण करती है औऱ हाइकोर्ट में देखे तो पूरे भारत मे मात्र 11 प्रतिशत अधिकतम महिला जज देखी जा सकेंगी। इस स्थिति से बाहर आने के लिए और लैंगिक समानता तथा सशक्त समाज के निर्माण के लिये उच्च संस्थानो में महिलाओं की भागीदारी के उदाहरण जरूरी है जो महिलाओं को बराबरी हेतु प्रेरित करेगी।
अभिषेक क्षितिज
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