महिलाये सिर्फ घर की व्यवस्था करने या सुख देने के लिए विवाह बंधन में बंधती है और बदले में पुरुष उसके खाने पीने की व्यवस्था करता है" यह बयान कितना शर्मनाक है! आप इसे पढ़कर अंदाजा लगा सकते है इसमें पुरुषवादी मानसिकता की गंध आ रही है। समाज पुरुष, महिला, या अन्य (LGBTQ) जो भी है वो अपने स्वयं के लिये जीवन जीने के लिए एक पद्धति अपनाने के लिये स्वतंत्र है। परन्तु परंपरा संस्कार धर्म संस्कृति के कुछ ऐसी पद्धतिया विकसित हुई जो किसी एक वर्ग के लिए वर्ग के शोषण और एक वर्ग को शोषक बनाने का माध्यम हो कर रह गयी गई।
अभी हाल के दिनों में महिलाओं पर उच्च पद हालांकि की समानता के दौर में विशिष्टता का छदम चोला ओढ़ने की परंपरा भी एक कुरीति है पर बैठे व्यक्तियों ने की जिससे उनके कुंठित मानसिकता की गंध आती है और वो वही गन्ध अपने समर्थको तक पहुँचाते है। सबसे दुःखद बात है कि आज कम ऐसे समाज मे रह रहे जिसके निर्माण के पीछे एक विचार आधारित संकल्पना होनी थी परंतु हम व्यक्ति समर्थित ढांचे में आकर रह गए है।
एक प्रसिद्ध अभिनेता मुकेश खन्ना जी का कहना है कि महिलाएं घर बाहर कार्य करने जाती है इसलिए उनके साथ बुरा वर्ताव छेड़खानी होती है, तो फिर सवाल उठता है कि घरेलू हिंसा और किशोरियों के साथ ज्यादतियां जो हो रही उसमे कौन सा कार्यस्थल था। मोहन भागवत जी का बयान से लगता है कि महिलाएं सिर्फ घर मे एक संविदा कर्मी है जो बंधक बना कर रहने के लिए है उनके अधिकार या उसकी स्वेच्छा की कोई जगह नही जैसे उसके स्वतंत्र अस्तित्व पर ही सवाल खड़ा किया जा रहा है। एक पूर्व मुख्यमंत्री को एक व्यक्ति (महिला के सन्दर्भ में) "आयटम"नजर आता है हमारी सोच किस स्तर पर आ गयी है हम तुलना के आधार तक तय नही कर पा रहे है मतभेद जाहिर करने की जल्दबाजी में अपना मानसिक दिलावलियापन उजागर कर रख रहे है।
ऐसा नही है कि इन नेताओं और वक्ताओं में ही ये मानसिकता दिख रही है कतई नही उससे भी ज्यादा घृणित शब्दो का इस्तेमाल समूची पुरुष जाति करती है चाहे वो कार्यस्थल पर हो या सड़क पर चलते हुए , घर मे ,आदि जगहों पर कभी वो सेक्सिस्ट कमेंट होते है कभी मजाक के शक्ल में फूहड़ता । महिलाओ को लेके पुरुष जाति में एक विशेष प्रकार का चित्र अपने दिमाग़ी दुनिया में कायम कर लिया है उसके हिसाब से स्त्री से यदि स्त्री भारतीय उप महाद्वीप से है तो वह एक प्राचीन सांस्कृतिक परिधान में दिखे तो वह एक अच्छे चरित्र की महिला होगी परन्तु यदि वो पाश्चात्य सभ्यता से प्रेरित है या उसकी पसंदगी में उसने कोई परिधान पहना है उसे देख कर अधिकतर पुरुषो में से एक दूसरे को दिखाकर उसके पर एक कुदृष्टि से आघात करेगे उसकी शारीरिक बनावट पर नजर फेरने के बाद उसके चरित्र पर हीनता का शब्द जोड़कर अपना पक्ष रखेगे। इस दृष्टांत से आप समझ सकते है कि पुरुषों के मानसिकता नैतिक रूप से दिवालिया हो चुकी है। हमारे समाज मे वैचारिक स्वीकार्यता की कमी और पूर्वाग्रह से ग्रसित मानसिकता इसके पीछे एक बड़ा कारण है।
हमे महिलाये पुरुष, किशोर, किशोरी,LGBTQ कोई भी समुदाय को उसके विचार को स्वतंत्र रूप से अपनाने दे और स्वयं भी अपनाये नही शक्ति है तो अपनी पूर्वाग्रह से ग्रसित मानसिकता को प्रसारित कर समाज मे गंदगी न फैलाये। विवाह कॉन्ट्रैक्ट नही बल्कि एक सहमति से दो विचारों के मेल है जो एक दूसरे की स्वतंत्रता खण्डित किये बिना आपसी स्वीकार्यता को अपनाते है।
हम पुरुषो अपनी पूर्वाग्रही सोच से मुक्त होना होगा।
©अभिषेक गौतम
" क्षितिज "
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